आज से लगभग 2500 वर्ष पहले जब भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना की, तब उन्होंने नाटक को एक संपूर्ण कला माना, लेकिन इसके लिए भी उन्होंने कई जरूरी घटक तय किए. नाट्य शास्त्र वो प्राचीन ग्रंथ और विरासत से भरा ऐसा दस्तावेज है जो भारत की प्रदर्शन कला की समृद्ध विरासत को खुद में समेटे हुए है. इसमें नृत्य, नाटक व संगीत के बीच ऐसे गहरे संबंध हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि सुर के बिना गीत नहीं, ताल के बिना संगीत नहीं और भाव को प्रदर्शित करने के लिए नृत्य से अच्छा कोई जरिया नहीं. इसलिए नाट्य का नृत भाव ही नृत्य बना और यह सिर्फ अपने आप में एक संपूर्ण कला नहीं है, बल्कि प्राचीन नाट्य कला को संपूर्णता प्रदान करने वाली कला भी यही है.
नाट्य और नृत्य कला का प्राचीन संगम
नाट्य शास्त्र का केंद्रीय विचार ‘नाट्य’ है, जो नृत्य (नृत्त), नाटक (नाटक) और संगीत (संगीत) में जुड़ाव को सामने रखता है और यह संरचना भारतीय प्रदर्शन कलाओं की पूरी प्रकृति को रेखांकित करती है, जहां प्रत्येक तत्व एक-दूसरे को पूरक और समृद्ध करता है. नाट्य शास्त्र न केवल कला के तकनीकी पहलुओं को समझाता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहरी समझ और सौंदर्यबोध को भी प्रतिबिंबित करता है. यह आज भी शास्त्रीय कलाकारों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बना हुआ है.
नृत्यः हमारे सामाजिक ताने-बाने का कलात्मक स्वरूप
इसी सौंदर्यबोध, नृत्य कला की बारीकियां, नाटक के कथ्य में नृत्य के संयोग और इसके अलग-अलग स्वरूपों को सामने रखने का काम किया ‘नाट्य वृक्ष’ ने जो कि 18वें विश्व नृत्य दिवस समारोह के तौर पर आयोजित किया गया था. 26 और 27 अप्रैल को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी), नई दिल्ली में आयोजित यह कला संगम भारतीय शास्त्रीय नृत्य की उसी प्राचीनता का बोध करा गया, जो हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है और जिससे हमारे सामाजिक जीवन का ताना-बाना कसा गया है.
प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना और पद्मश्री से सम्मानित गीता चंद्रन द्वारा संचालित इस दो दिवसीय आयोजन को आईआईसी के सहयोग से आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय नृत्य रूपों की समृद्धि को दर्शकों ने सिर्फ देखा, बल्कि उसे महसूस कर अभिभूत भी हुए. यह मौका युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन करने का जरिया भी बना, जहां उन्होंने नृत्य कौशल की विविध परंपराओं की जरूरी जानकारियां भी हासिल हुईं.
भारतीय नृत्यों की शास्त्रीय परंपरा
अपनी स्थापना के बाद से, नाट्य वृक्ष भारत में विश्व नृत्य दिवस को मनाने की पहले में अव्वल रहा है. यह प्रस्तुति, वर्कशॉप, लेक्चर्स और संवाद के जरिए कला को समर्पित एक प्रगतिशील मंच के रूप में विकसित हुआ है. इस वर्ष का उत्सव अपनी समावेशी भावना के लिए खास तौर पर जाना जाएगा, जिसमें भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुडी और ओडिसी जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों के साथ-साथ समकालीन और प्रयोगात्मक अभिव्यक्तियों को स्थान दिया गया, जिसने दर्शकों को भारतीय नृत्य के विकसित परिदृश्य की एक झलक प्रदान की.
उत्सव की शुरुआत 26 अप्रैल को प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी के संबोधन ‘डांसिंग अवे’ के साथ हुई. नृत्य को समय से परे एक माध्यम के रूप में प्रस्तुत करते हुए, उन्होंने कल्पना, स्मृति और भावनाओं के ताने-बाने को काव्यात्मक और दार्शनिक अंदाज में पेश किया. इसके बाद नृत्य की बारीकियों से नवांकुर नए कलाकार सिंचित हुए और फिर घिर आई शाम.
भरत नाट्यम और कथक की भावपूर्ण प्रस्तुति
इस शाम का जिक्र ही इस आयोजन की आत्मा है, चेतना है. भारतीय परिवारों में शाम की गोधूलि बेला का समय संध्या वंदन का होता है और गोधूलि के पवित्र समय को और पावन बना दिया नृत्यांगना मधुरा भ्रुशुंडी ने. यंग डांसर्स फेस्टिवल में वह एक उभरते सितारे के तौर पर स्टेज पर आईं और दर्शकों को अपनी भरत नाट्यम की विशेष प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर दिया. उनके कला कौशल को देख कर अभी आंखें रुकी ही थीं कि अगले ही पल स्टेज पर थिरक रहे थे धीरेंद्र तिवारी, जिनके घुंघरुओं की लय सूर्यदेव के साथ कदमताल कर रही थीं. वह आदित्य हृदय स्त्रोत की दिव्य श्लोकानुभूति के साथ मंच पर आए. इस दौरान रौशनी हल्की लाल हुई.
आदित्य हृद. स्त्रोत की दिव्य श्लोकानुभूति
वह इंद्र देव के सारथि अरुण की तरह ही धीरे-धीरे ऐसे आगे बढ़े जैसे वाकई सूर्य देव के रथ का संचालन करते हुए सारी धरती को अपनी आभा से प्रकाशित करने आए हैं. फिर छिटकती किरणों की ही तरह मंच पर रौशनी धीरे-धीरे तेज हुई और जैसे घने बादलों को चीर कर सूर्यदेव निकल आते हैं, ठीक उसी तरह धीरेंद्र तिवारी कथक के दिनमान बनकर मंच पर छा गए. कथक की उनकी इस गहराई में जहां पदचापों और उंगलियों की गति से भाव का संयोजन दिखा तो वहीं उनकी गतिशीलता ने लोगों का मन मोह लिया. अगली पंक्ति में बैठी कलाकार मंडली जिनमें से कई खुद अब विभूति बन चुके हैं, उन्होंने यह माना कि कथक और भरतनाट्यम अब मधुरा और धीरेंद्र जैसे नवांकुर कलाकारों के पास बतौर विधा पहुंच रहा है तो यह अगली पीढ़ी की संभावनाओं को उजागर करता है. विरासत कौशल से भरे हाथों में है ऐसा मानना चाहिए.
अवतरणः नाट्य की 2500 साल पुरानी विरासत का मंचन
अगले दिन 27 अप्रैल को उत्सव की शुरुआत प्रसिद्ध कोरियोग्राफर तनुश्री शंकर द्वारा आयोजित मूवमेंट एंड डांस एस्थेटिक्स वर्कशॉप के साथ हुई. कम से कम पांच वर्षों के प्रशिक्षण वाले नर्तकों के लिए डिज़ाइन की गई इस वर्कशॉप में ने प्रतिभागियों को रचनात्मक सीमाओं को विस्तार देने के लिए प्रेरित किया. दोपहर में अवतरणा – द स्टोरी ऑफ नाट्य प्रस्तुत किया गया, जो 2,500 वर्ष पुरानी भारतीय नृत्य की उत्पत्ति पर एक मजेदार और नाटकीय प्रस्तुति थी. रमा भारद्वाज द्वारा लिखित और प्रस्तुत इस प्रदर्शन ने हास्य के साथ भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दैवीय जड़ों को उजागर किया, जिसने दर्शकों का मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी किया.
उत्सव का एक प्रमुख आकर्षण 6वां नाट्य वृक्ष लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार था, जो स्पिक मैके और इसके संस्थापक किरण सेठ को भारत की सांस्कृतिक विरासत को युवाओं तक पहुंचाने में उनके अथक प्रयासों के लिए प्रदान किया गया. इस मौके पर गीता चंद्रन ने कहा, “स्पिक मैके ग्रामीण और शहरी भारत के बीच की खाई को पाटता है, जिससे उन छात्रों को कला तक पहुंच मिलती है जो सिर्फ रुटीन पढ़ाई को ही शिक्षा मान रहे हैं, संस्कृति को नहीं.
मौन की मुखर अभिव्यक्ति है नृत्य
उत्सव के महत्व पर विचार करते हुए, नाट्य वृक्ष की संस्थापक-अध्यक्ष गीता चंद्रन ने कहा, “वर्ल्ड डांस डे एक ऐसा क्षण है जब हम यह उत्सव मनाते हैं और इस बात को समझते हैं कि नृत्य हमारे जीवन में क्या लाता है. तकनीक या परंपरा ही नहीं, बल्कि भावना, सत्य और बदलाव. यह उत्सव हमारी कला और उन युवा नर्तकों को समर्पण है जो इसे आगे ले जाएंगे.” नाट्य वृक्ष का विश्व नृत्य दिवस उत्सव 2025 ने भारत की शास्त्रीय नृत्य विरासत के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पुनः स्थापित किया, साथ ही इसके भविष्य को अपनाया. स्थापित और उभरते कलाकारों दोनों के लिए एक मंच प्रदान करके, उत्सव ने नृत्य की कालातीत प्रासंगिकता को रेखांकित किया, जो अभिव्यक्ति और संबंध का एक माध्यम है.